Wednesday, December 30, 2009

नया साल शुभ ho

नव वर्ष में ,


आपका हर तरह से कल्याण हो,
समस्याओं का निवारण हो ,
सुखो का आगमन हो ,
खुशियों से भरा आपका दामन हो ।

नया उत्साह , नयी उमंग ,
हर पल हो आपके संग संग।
मन प्रस्सन जी खुशहाल हो ,
जीवन से दूर हर बवाल हो ।

दिन में चैन ,
रातों को भरपूर नींद मिले ,
प्रभू की कृपा से ,
आपके जीवन का रोम रोम खिले।

दिल से दूर सब शिकवे गिले ,
और बाकी सब मलाल हो ,
सुख समृधि से भरपूर,
आने वाला साल हो ।

Saturday, December 26, 2009

तुम्हे देखकर,

मैंने जाना

किसी को बार बार ,

देखने की हसरत ,

किस तरह ,

दिल को मजबूर करती हैं।

तुम्हे चाहकर ,

मैंने जाना ,

किसी को खुश ,

रखने की हसरत,

किस तरह ,

दिल का अरमान बनाती हैं।

तुम्हे पाकर ,

मैंने जाना ,

किसी के अपने ,

पास होने की हकीकत,

किस तरह,

दिल को आबाद करती हैं।

तुम्हे छू कर ,

मैंने जाना ,

किसी को छू कर ,

पिघल जाने की हसरत ,

किस तरह ,

दिल को बेताब करती हैं।

तुम्हे खोकर ,

मैंने जाना ,

किसे के हमेशा ,

के लिए जाने के बाद ,

किस तरह

जिन्दगी बेमानी लगती हैं।

आज का वक़्त

मेरी कुछ हसरते
इस तरह जवान हो गयी
हर हद पीछे छोड़ ,
पूरी तरह बेलगाम हो गयी।

हर रिश्ते की ईमानदारी
जिस्मो की गर्माहट में खोने लगी ,
एहसास की मासूमियत भी ,
अब बेईमान होने लगी।

आँखों ने आंसुओं के साथ ,
अपनी शर्म भी बहा दी ।
वक़्त ने घूंघट उतारा तो ,
उसने अपनी असली सूरत दिखा दी।





Thursday, November 5, 2009

अच्छा होता

जिस तरह जाते वक़्त ,
एहसासों को समेत ,
जज्बातों की गठरी बाँध ,
तुम चल दिए ,
अपनी यादों को भी ,
अपने साथ ले जाते तो ,
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक़्त ,
ना पीछे मुडकर देखा
ना ही पीछे से आती सदा ,
पर कान धरा ।
मेरे जज्बातों को भी गूंगा बहरा ,
कर जाते तो
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक़्त ,
जुदाई का मंगल सूत्र पहनते हुए,
तुम्हारे हाथ नहीं कान्म्पे ,
ना ही देहरी लांघते हुए ,
तुम्हारे कदम डगमगाए ।
थोड़ी सी अपनी ये बेरुखी ,
मुझे दे जाते तो ,
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक्त ,
बरसों पुराने बंधन को ,
एक पल में ही तोड़ गए ,
पुराने रिश्ते को ,
पुराने कपडे की तरह छोड़ गए ।
मुझे भी पुरी तरह छोड़ जाते तो ,
अच्छा होता।

Wednesday, November 4, 2009

रात भर गिनी हमने बिस्तर की सलवटें ,

रात भर तुझे याद कर बदली करवटें ,

रात भर तेरे साथ गुजारे लम्हात,

की दौलत , दिल सहेजता रहा ।

रात भर आने वालों पलों की सूरत ,

ख्वाबों के आईने में दिल देखता रहा।

रात भर तुझसे दूर होने की मायूसी ,

किसी कोने में सिसकती रही ।

रात भर तुझसे मिलने की उम्मीद ,

धडकनों पर बरसती रही।

रात भर एक हसरत की आग में ,

दिल जलता ही रहा ।

रात भर उम्मीद का , मायूसी का,

दौर चलता ही रहा ।

Tuesday, November 3, 2009

हसरत मेरी झूठी ही सही

हसरत मेरी झूठी ही सही ,
पर एहसास तो सच्चा था ।
जो भी था ,
वो तेरे मेरे हक का था ।
तेरे जाने के बाद ,
हुआ है मुझको एहसास ,
तेरा मेरा रिश्ता ,
कितना कच्चा था ।
हसरत मेरी झूठी ही सही ,
पर एहसास तो सच्चा था।
तेरे साथ गुजरा हर पल ,
अक्सर अचरज करता हैं
क्या वो कभी हकीकत था ,
या किसी ख्वाब का हिस्सा था ।
हसरत मेरी झूठी ही सही ,
पर एहसास तो सच्चा था।
साथ चलते रहते तो शायद,
मंजिल मिल ही जाती ,
खैर , साथ तुम्हारा कम ही सही ,
पर जितना था बहुत अच्छा था।
हसरत मेरी झूठी ही सही ,
पर एहसास तो सच्चा था।



Monday, November 2, 2009

याद आया

बाद मुद्दत उधर से गुजरा तो ,
गुजरा हुआ जमाना याद आया ।
बीते हुए पल जी उठे ,
हर लम्हा पुराना याद आया ।
कितने ही जज्बात नींद से जागे ,
जब तेरा अलसाना याद आया ।
वो मेरा छूना तुझको ,
तेरा नजरे चुराना याद आया ।
हर समय वो तेरा घबराना ,
आगे बढ़ा कर हाथ पीछे हटाना याद आया।
हदों में रहने की कोशिश में ,
हर हद से गुजर जाना याद आया ।
पहले पहले मिलन के पलों में ,
तेरा मेरी बाहों में बिखर जाना याद आया ।
बड़े वेवक्त मैं उधर से गुजरा ,
बड़े वेवक्त गुजरा जमाना याद आया ।
एक प्यास जो हुई नहीं कभी पूरी ,
उस से मायूस होना याद आया ।

Friday, October 23, 2009

हसरत झूठी ही सही ,
अरमान मेरे सच्चे थे ।
जो भी थे ,
वो सब तेरे हक के थे।

आरजू की तपिश से ,
धड़कन को जला कर ,
जाने कितने एहसासों ,
को गला कर ,
अरमानो को दिल में
उतारा था मैंने ।
एक झटके में तुम
सब को छोड़ गए ,
बरसों का नाता,
एक पल में तोड़ गए
माना मैं तो पराया सही ,
पर यह सब तो तेरे अपने थे ,
जो भी थे ,
वो सब तेरे हक के थे।

Thursday, October 22, 2009

रात भर ,

एक एहसास की सीमा ,

तुमसे शुरू हो कर ,

तुम पर ख़तम होती रही।


रात भर,

एक ख्वाब की आरजू ,

तुम्हे छू कर ,

बिस्तर पर पिघलती रही।


रात भर ,

एक प्यास का एहसास ,

तुमसे लिपटने के लिए ,

करवटें बदलता रहा ।


सब कुछ तो हैं पर कहीं कोई कमी सी हैं ,


एहसासों में कहीं नमी सी है


Monday, October 19, 2009

तुम क्या जानोगे दर्द मेरा ,

तुम क्या समझो इस तन्हाई को ,

कैसे रातें तरसा करती हैं ,

गुजरे दिन की परछाई को ।

घायल की गति घायल जाने,

और ना जाने कोई,

इस जग में कौन हैं ऐसा ,

समझे जो पीर पराई को ।

मेरे दिल की पीर में

उकरे हैं तुम्हारे नाम के अक्षर ,

ना चाहते हुए भी ,

याद तुम आ ही जाते हो अक्सर ,

दिल मेरा ,मेरा दुश्मन हैं,

जो भूल ना पाया हरजाई को ।

Thursday, October 15, 2009



मेरी हंसी को तुम हंसते हो ,



मेरी तरह तुम भी झूठे हो



अपनी आंखों में बसा कर तुम्हे ,


मैं जाने कहाँ कहाँ से उजडा,


तुम्हे क्या हुआ हैं

क्यों तुम ऐसे खोए खोए रहते हो ,
जाने वो क्या बात हैं,
जिसे सोचते हो दिन रात ।
चेहरे का रंग भी उड़ा उड़ा सा है ,
आंखों में तन्हाई पसरी हुई हैं ।
जुल्फें बिखर कर चेहरे से
आ उलझी हैं ।
जाने कहाँ तुम ,
नींद को भूल आए हो ।
क्यों तुम कभी हंसते ही नहीं,
मुस्कराहट से ही काम चला लेते हो ,
सवालात से परेशान हो कर के ,
चेहरा क्यों छुपा लेते हो ,
आंखों में अब यह नमी का एहसास क्यों है ,
क्या मैं यह सोचूं ,
मुझसे जुदा हो कर ,
ख़ुद से भी जुदा हो गए हो ।
मुझे तनहा कर के ,
तुम भी तनहा हो गए हो।

Tuesday, October 13, 2009

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों,
किसी के जाने के बाद,
उसके जाने का एहसास,
बरसों तक,
दिल को सालता रहा।

ना जाने क्यों,
किसी के जाने के बाद,
उसके आने की उम्मीद ,
बरसों तक ,
दिल पालता रहा ।

ना जाने क्यों ,
किसी के जाने के बाद,
वो शायद कभी ना लौटे ,
यह सवाल ,
बरसों तक ,
दिल टालता रहा ।
कल रात,
देर रात तक ,
एक एहसास,
मेरे साथ,
जागता रहा ,
और मुझे,
जगाता रहा।

एक एहसास जिसमे,
तेरी शिकायत भी शायद
शामिल थी।
एक एहसास जिसे ,
तेरी प्यास भी शायद,
हासिल थी।

एक एहसास
जिसमे एक तकलीफ ,
की गर्माहट भी थी।
एक एहसास
कई एहसासों ,
की आहत भी थी ।

एक एहसास
जो दिल को छूकर ,
गुजर गया ।
एक एहसास ,
कई मुर्दा एहसासों को,
जिंदा कर गया।

कभी ऐसा भी तो हो.

एक बार ,
कभी ऐसा भी तो हो,
तू भावनाओं का तूफ़ान बने,
मैं तेरी सीमा बाँध दूँ।

एक बार ,
कभी ऐसा भी तो हो ,
तू शर्म की सीमा को लांघे,
मैं हया का एहसास बनू ।

एक बार,
कभी ऐसा भी तो हो ,
चाहत की हरारत में तू सुलगे,
मैं शराफत का ठंडा जाम बनू।

नहीं होती....

यादों की परछाई में ,
एहसासों की गहराई में,
तू नजर ही आ जाती हैं ,
जहाँ तेरे होने की गुंजाइश ही नहीं होती।

गुजरे वक्त की बातें,
आज की यादें बन चुकी हैं ,
साथ बिठाये पलों पर ,
वक्त की धूल जम चुकी हैं,
पर तुझे चाहने की ख्वाहिस
कभी कम ही नहीं होती।

वक्त के दामन में लिपटी,
एक चाहत जाने कब से ,
हकीकत होने के लिए बेकरार हैं,
लंबे इन्तजार की तपिश में ,
पिघलने के बाद भी ,
मेरी चाहत कम नहीं होती।

ना जाने क्यों

ना जाने क्यों,
तेरे जाने के बाद,
मैं कभी ख़ुद को
पा ही ना सका,

ना जाने क्यों ,
तेरी जुदाई का गम ,
मैं अपने दिल से ,
मिटा ही ना सका,

ना जाने क्यों,
लाख कोशिः की ,
पर पुरी तरह से ,
तुझे भुला ही ना सका.

Tuesday, April 14, 2009

जिंदगी से मेरी तुम यूँ गुजरें
जैसे मैं ऐक रास्ता था ,
तुम्हारी मंजिल नहीं ।

साथ साथ चलने के लिए ,
बहानों की जरूरत नहीं होती,
साथ छोड़ने के लिए ,
बस ऐक शिकायत काफी हैं ।

हाथ छूटे भी तो शायद ,
रिश्ते टूटा नहीं करते ,
दिल पर  पड़े  यादों के निशाँ ,
यूँ ही छूटा नहीं करते।


Tuesday, February 24, 2009

खुदा जाने क्या अंजाम हो

नजरों ने फ़िर हिमाकत की हैं ,
एक चेहरे की चाहत की हैं ।
हाथ मैंने फ़िर फैलाए हैं ,
फ़िर वही दुआ माँगी हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह दुआ कुबूल हो जाए।

किसी के कदमो की आहट से ,
दिल को सरगम का एहसास होता हैं,
चोरी चोरी से देख कर किसी को ,
दिल जाने कितने सपने पिरौता हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह सपने सच हो जाए.

किसी की हसीं सूरत को मैंने
अपने दिल का चाँद बनाया हैं।
इस चाँद को छूने के लिए ,
मैंने हाथ आगे बढाया हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
जो वो मेरे दिल का चाँद हो जाए.

हसरत मेरी मेरे दिल को ,
माउसी के झोंके देती हैं ।
मेरी हकीकत आगे बढ़ कर ,
मेरे कदम रोक लेती हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह हसरत हकीकत हो जाए।

नामुमकिन सी आरजू को लिए
मेरा दिल उसके पूरे होने की आरजू करता हैं ।
साथ ही साथ जाने क्यों ,
मेरा दिल यह भी सोचा करता हैं ।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह आरजू पुरी हो जाए.

Sunday, January 25, 2009

nahin hotaa

लम्हा दर लम्हा बढ़ जाती हैं चाहतों से दूरी,
यह फासला हैं कि मुझसे तय नहीं होता
मोहब्बत में शायद सब कुछ हार चुका हूँ,
वो मेरा हो कर भी मेरा नहीं होता.


उसको जिंदगी से गुजरे ,
एक जमाना बीत चुका हैं,
हाथ छूट चुका हैं ,
रिश्ता टूट चुका हैं ,
पर कभी कभी ना जाने क्यों ,
दिल में एक कसक बार बार उठ जाती हैं ,
बस ऐसे ही पलों में
तुम मुझे बहुत याद आती हो


ना जाने मेरे दिल का ,
वो कौन सा हिस्सा था
जो तुम अपने साथ ले के चली गयी,
ना जाने तेरे दिल का ,
वो कौन सा हिस्सा हैं ,
जो अभी भी मेरे दिल से
अभी तक जुड़ा जुड़ा है .



शाम ढलते ही जला तो देता हूँ मैं हसरतों के चिराग ,
पर अँधेरा मेरे दिल का कम नहीं होता