Thursday, November 5, 2009

अच्छा होता

जिस तरह जाते वक़्त ,
एहसासों को समेत ,
जज्बातों की गठरी बाँध ,
तुम चल दिए ,
अपनी यादों को भी ,
अपने साथ ले जाते तो ,
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक़्त ,
ना पीछे मुडकर देखा
ना ही पीछे से आती सदा ,
पर कान धरा ।
मेरे जज्बातों को भी गूंगा बहरा ,
कर जाते तो
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक़्त ,
जुदाई का मंगल सूत्र पहनते हुए,
तुम्हारे हाथ नहीं कान्म्पे ,
ना ही देहरी लांघते हुए ,
तुम्हारे कदम डगमगाए ।
थोड़ी सी अपनी ये बेरुखी ,
मुझे दे जाते तो ,
अच्छा होता।

जिस तरह जाते वक्त ,
बरसों पुराने बंधन को ,
एक पल में ही तोड़ गए ,
पुराने रिश्ते को ,
पुराने कपडे की तरह छोड़ गए ।
मुझे भी पुरी तरह छोड़ जाते तो ,
अच्छा होता।

No comments:

Post a Comment