Sunday, January 25, 2009

nahin hotaa

लम्हा दर लम्हा बढ़ जाती हैं चाहतों से दूरी,
यह फासला हैं कि मुझसे तय नहीं होता
मोहब्बत में शायद सब कुछ हार चुका हूँ,
वो मेरा हो कर भी मेरा नहीं होता.


उसको जिंदगी से गुजरे ,
एक जमाना बीत चुका हैं,
हाथ छूट चुका हैं ,
रिश्ता टूट चुका हैं ,
पर कभी कभी ना जाने क्यों ,
दिल में एक कसक बार बार उठ जाती हैं ,
बस ऐसे ही पलों में
तुम मुझे बहुत याद आती हो


ना जाने मेरे दिल का ,
वो कौन सा हिस्सा था
जो तुम अपने साथ ले के चली गयी,
ना जाने तेरे दिल का ,
वो कौन सा हिस्सा हैं ,
जो अभी भी मेरे दिल से
अभी तक जुड़ा जुड़ा है .



शाम ढलते ही जला तो देता हूँ मैं हसरतों के चिराग ,
पर अँधेरा मेरे दिल का कम नहीं होता






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