Wednesday, November 4, 2009

रात भर गिनी हमने बिस्तर की सलवटें ,

रात भर तुझे याद कर बदली करवटें ,

रात भर तेरे साथ गुजारे लम्हात,

की दौलत , दिल सहेजता रहा ।

रात भर आने वालों पलों की सूरत ,

ख्वाबों के आईने में दिल देखता रहा।

रात भर तुझसे दूर होने की मायूसी ,

किसी कोने में सिसकती रही ।

रात भर तुझसे मिलने की उम्मीद ,

धडकनों पर बरसती रही।

रात भर एक हसरत की आग में ,

दिल जलता ही रहा ।

रात भर उम्मीद का , मायूसी का,

दौर चलता ही रहा ।

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