मेरी कुछ हसरते
इस तरह जवान हो गयी
हर हद पीछे छोड़ ,
पूरी तरह बेलगाम हो गयी।
हर रिश्ते की ईमानदारी
जिस्मो की गर्माहट में खोने लगी ,
एहसास की मासूमियत भी ,
अब बेईमान होने लगी।
आँखों ने आंसुओं के साथ ,
अपनी शर्म भी बहा दी ।
वक़्त ने घूंघट उतारा तो ,
उसने अपनी असली सूरत दिखा दी।
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