तुम क्या जानोगे दर्द मेरा ,
तुम क्या समझो इस तन्हाई को ,
कैसे रातें तरसा करती हैं ,
गुजरे दिन की परछाई को ।
घायल की गति घायल जाने,
और ना जाने कोई,
इस जग में कौन हैं ऐसा ,
समझे जो पीर पराई को ।
मेरे दिल की पीर में
उकरे हैं तुम्हारे नाम के अक्षर ,
ना चाहते हुए भी ,
याद तुम आ ही जाते हो अक्सर ,
दिल मेरा ,मेरा दुश्मन हैं,
जो भूल ना पाया हरजाई को ।
No comments:
Post a Comment