कभी किसी मुकाम पर,
साहिल मिलता ही नहीं ।
एक ही दिल से ,
दिल का काम चलता ही नहीं।
आरजू पर कैद हैं ,
एहसास में भी दरारें हैं।
कब के गैर हो गए वो ,
जो हमें लगते हमारे हैं।
ना रूह को सुकून मिला ,
ना ही जिस्म को आराम ।
अपनी तो हालत है ,
ना माया मिली ना राम ।
जाने क्यों हर बात ,
दिल को छू जाती है ।
जाने क्यों हर बात पर ,
दिल को हंशी आती हैं ।
बात निकली ,
और दिल मजबूर हो गया ।
एक गलती ,
बेचारा सबसे दूर हो गया ।
No comments:
Post a Comment