बात निकलेगी तो,
दूर तक जायेगी ।
बात निकलते ही ,
बिलकुल पराई हो जायेगी।
जाते जाते ,
बात कितने रूप बदलेगी ,
तुझ तक पहुँचते पहुँचते ,
क्या से क्या हो जायेगी।
यह भी हो सकता है ,
तिल का ताड़ हो जाए ।
मैंने जो कहा भी नहीं ,
उसको कहने का गुमान हो जाए ।
यह भी हो सकता है ,
तेरी समझ का रंग ,
मेरी बात पर चढ़ कर ,
उसको ही बदरंग कर दे ।
यह भी हो सकता है ,
मेरी बात बन के आइना ,
मेरे दिल की कोई छुपी हसरत ,
तेरे सामने ब्यान कर दे ।
होने को कुछ भी हो सकता है ,
और इसी वजह से ,
दिल डरता है ।
एक छोटी सी बात कहीं ,
बड़ा झगडा खडा ना कर दे ।
बातों के जाल में ,
फसने की तुम ,
गलती ना करना ,
भूल से भी ,
मेरी बात पर तुम ,
कभी यकीन ना करना।
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