Wednesday, January 6, 2010

मेरी बात पर कभी यकीन ना करना

बात निकलेगी तो,

दूर तक जायेगी ।

बात निकलते ही ,

बिलकुल पराई हो जायेगी।

जाते जाते ,

बात कितने रूप बदलेगी ,

तुझ तक पहुँचते पहुँचते ,

क्या से क्या हो जायेगी।

यह भी हो सकता है ,

तिल का ताड़ हो जाए ।

मैंने जो कहा भी नहीं ,

उसको कहने का गुमान हो जाए ।

यह भी हो सकता है ,

तेरी समझ का रंग ,

मेरी बात पर चढ़ कर ,

उसको ही बदरंग कर दे ।

यह भी हो सकता है ,

मेरी बात बन के आइना ,

मेरे दिल की कोई छुपी हसरत ,

तेरे सामने ब्यान कर दे ।

होने को कुछ भी हो सकता है ,

और इसी वजह से ,

दिल डरता है ।

एक छोटी सी बात कहीं ,

बड़ा झगडा खडा ना कर दे ।

बातों के जाल में ,

फसने की तुम ,

गलती ना करना ,

भूल से भी ,

मेरी बात पर तुम ,

कभी यकीन ना करना।

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