हसरत झूठी ही सही ,
अरमान मेरे सच्चे थे ।
जो भी थे ,
वो सब तेरे हक के थे।
आरजू की तपिश से ,
धड़कन को जला कर ,
जाने कितने एहसासों ,
को गला कर ,
अरमानो को दिल में
उतारा था मैंने ।
एक झटके में तुम
सब को छोड़ गए ,
बरसों का नाता,
एक पल में तोड़ गए
माना मैं तो पराया सही ,
पर यह सब तो तेरे अपने थे ,
जो भी थे ,
वो सब तेरे हक के थे।
Friday, October 23, 2009
Thursday, October 22, 2009
Monday, October 19, 2009
तुम क्या जानोगे दर्द मेरा ,
तुम क्या समझो इस तन्हाई को ,
कैसे रातें तरसा करती हैं ,
गुजरे दिन की परछाई को ।
घायल की गति घायल जाने,
और ना जाने कोई,
इस जग में कौन हैं ऐसा ,
समझे जो पीर पराई को ।
मेरे दिल की पीर में
उकरे हैं तुम्हारे नाम के अक्षर ,
ना चाहते हुए भी ,
याद तुम आ ही जाते हो अक्सर ,
दिल मेरा ,मेरा दुश्मन हैं,
जो भूल ना पाया हरजाई को ।
Thursday, October 15, 2009
तुम्हे क्या हुआ हैं
क्यों तुम ऐसे खोए खोए रहते हो ,
जाने वो क्या बात हैं,
जिसे सोचते हो दिन रात ।
चेहरे का रंग भी उड़ा उड़ा सा है ,
आंखों में तन्हाई पसरी हुई हैं ।
जुल्फें बिखर कर चेहरे से
आ उलझी हैं ।
जाने कहाँ तुम ,
नींद को भूल आए हो ।
क्यों तुम कभी हंसते ही नहीं,
मुस्कराहट से ही काम चला लेते हो ,
सवालात से परेशान हो कर के ,
चेहरा क्यों छुपा लेते हो ,
आंखों में अब यह नमी का एहसास क्यों है ,
क्या मैं यह सोचूं ,
मुझसे जुदा हो कर ,
ख़ुद से भी जुदा हो गए हो ।
मुझे तनहा कर के ,
तुम भी तनहा हो गए हो।
जाने वो क्या बात हैं,
जिसे सोचते हो दिन रात ।
चेहरे का रंग भी उड़ा उड़ा सा है ,
आंखों में तन्हाई पसरी हुई हैं ।
जुल्फें बिखर कर चेहरे से
आ उलझी हैं ।
जाने कहाँ तुम ,
नींद को भूल आए हो ।
क्यों तुम कभी हंसते ही नहीं,
मुस्कराहट से ही काम चला लेते हो ,
सवालात से परेशान हो कर के ,
चेहरा क्यों छुपा लेते हो ,
आंखों में अब यह नमी का एहसास क्यों है ,
क्या मैं यह सोचूं ,
मुझसे जुदा हो कर ,
ख़ुद से भी जुदा हो गए हो ।
मुझे तनहा कर के ,
तुम भी तनहा हो गए हो।
Tuesday, October 13, 2009
ना जाने क्यों
ना जाने क्यों,
किसी के जाने के बाद,
उसके जाने का एहसास,
बरसों तक,
दिल को सालता रहा।
ना जाने क्यों,
किसी के जाने के बाद,
उसके आने की उम्मीद ,
बरसों तक ,
दिल पालता रहा ।
ना जाने क्यों ,
किसी के जाने के बाद,
वो शायद कभी ना लौटे ,
यह सवाल ,
बरसों तक ,
दिल टालता रहा ।
किसी के जाने के बाद,
उसके जाने का एहसास,
बरसों तक,
दिल को सालता रहा।
ना जाने क्यों,
किसी के जाने के बाद,
उसके आने की उम्मीद ,
बरसों तक ,
दिल पालता रहा ।
ना जाने क्यों ,
किसी के जाने के बाद,
वो शायद कभी ना लौटे ,
यह सवाल ,
बरसों तक ,
दिल टालता रहा ।
कल रात,
देर रात तक ,
एक एहसास,
मेरे साथ,
जागता रहा ,
और मुझे,
जगाता रहा।
एक एहसास जिसमे,
तेरी शिकायत भी शायद
शामिल थी।
एक एहसास जिसे ,
तेरी प्यास भी शायद,
हासिल थी।
एक एहसास
जिसमे एक तकलीफ ,
की गर्माहट भी थी।
एक एहसास
कई एहसासों ,
की आहत भी थी ।
एक एहसास
जो दिल को छूकर ,
गुजर गया ।
एक एहसास ,
कई मुर्दा एहसासों को,
जिंदा कर गया।
देर रात तक ,
एक एहसास,
मेरे साथ,
जागता रहा ,
और मुझे,
जगाता रहा।
एक एहसास जिसमे,
तेरी शिकायत भी शायद
शामिल थी।
एक एहसास जिसे ,
तेरी प्यास भी शायद,
हासिल थी।
एक एहसास
जिसमे एक तकलीफ ,
की गर्माहट भी थी।
एक एहसास
कई एहसासों ,
की आहत भी थी ।
एक एहसास
जो दिल को छूकर ,
गुजर गया ।
एक एहसास ,
कई मुर्दा एहसासों को,
जिंदा कर गया।
कभी ऐसा भी तो हो.
एक बार ,
कभी ऐसा भी तो हो,
तू भावनाओं का तूफ़ान बने,
मैं तेरी सीमा बाँध दूँ।
एक बार ,
कभी ऐसा भी तो हो ,
तू शर्म की सीमा को लांघे,
मैं हया का एहसास बनू ।
एक बार,
कभी ऐसा भी तो हो ,
चाहत की हरारत में तू सुलगे,
मैं शराफत का ठंडा जाम बनू।
कभी ऐसा भी तो हो,
तू भावनाओं का तूफ़ान बने,
मैं तेरी सीमा बाँध दूँ।
एक बार ,
कभी ऐसा भी तो हो ,
तू शर्म की सीमा को लांघे,
मैं हया का एहसास बनू ।
एक बार,
कभी ऐसा भी तो हो ,
चाहत की हरारत में तू सुलगे,
मैं शराफत का ठंडा जाम बनू।
नहीं होती....
यादों की परछाई में ,
एहसासों की गहराई में,
तू नजर ही आ जाती हैं ,
जहाँ तेरे होने की गुंजाइश ही नहीं होती।
गुजरे वक्त की बातें,
आज की यादें बन चुकी हैं ,
साथ बिठाये पलों पर ,
वक्त की धूल जम चुकी हैं,
पर तुझे चाहने की ख्वाहिस
कभी कम ही नहीं होती।
वक्त के दामन में लिपटी,
एक चाहत जाने कब से ,
हकीकत होने के लिए बेकरार हैं,
लंबे इन्तजार की तपिश में ,
पिघलने के बाद भी ,
मेरी चाहत कम नहीं होती।
एहसासों की गहराई में,
तू नजर ही आ जाती हैं ,
जहाँ तेरे होने की गुंजाइश ही नहीं होती।
गुजरे वक्त की बातें,
आज की यादें बन चुकी हैं ,
साथ बिठाये पलों पर ,
वक्त की धूल जम चुकी हैं,
पर तुझे चाहने की ख्वाहिस
कभी कम ही नहीं होती।
वक्त के दामन में लिपटी,
एक चाहत जाने कब से ,
हकीकत होने के लिए बेकरार हैं,
लंबे इन्तजार की तपिश में ,
पिघलने के बाद भी ,
मेरी चाहत कम नहीं होती।
ना जाने क्यों
ना जाने क्यों,
तेरे जाने के बाद,
मैं कभी ख़ुद को
पा ही ना सका,
ना जाने क्यों ,
तेरी जुदाई का गम ,
मैं अपने दिल से ,
मिटा ही ना सका,
ना जाने क्यों,
लाख कोशिः की ,
पर पुरी तरह से ,
तुझे भुला ही ना सका.
तेरे जाने के बाद,
मैं कभी ख़ुद को
पा ही ना सका,
ना जाने क्यों ,
तेरी जुदाई का गम ,
मैं अपने दिल से ,
मिटा ही ना सका,
ना जाने क्यों,
लाख कोशिः की ,
पर पुरी तरह से ,
तुझे भुला ही ना सका.
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