रातों में जब तन्हाई की ,
चादर ओड़कर ,
लम्हे सोने लगते हैं ,
वक्त थम सा जाता हैं ,
और जिंदगी रुक सी जाती हैं ,
बस ऐसे कुछ पलों में ,
तू मुझे बहुत याद आती हैं .
आंखों में तेरी यादों का ,
मंजर तैरने लगता है ,
तू हकेकात थी या फिर ख्बाब कोई ,
दिल बस यही सोचा करता है ,
और सोचते सोचते ,
आँखें मेरी भर जाती हैं ।
बस ऐसे ही कुछ पलों में ,
तू मुझे बहुत याद आती है।
अपने दिल से शायद,
तेरा नाम मिटाना मुमकिन ही नहीं ,
तेरी यादों से शायद ,
मेरा बाहर आना मुमकिन ही नहीं,
जब हर दम मेरी,
धडकन तेरा नाम दोहराती है ,
बस ऐसे ही कुछ पलों में ,
तू मुझे बहुत याद आती है।
अक्सर मैं सोचा करता हूँ ,
ख़ुद से भी पुचा करता हूँ ,
क्या सच में ,
अब तेरा मुझसे कोई नाता ही नहीं,
क्या सच में ,
सब कुछ टूट चुका हैं ,
या फिर ,
अभी कहीं कुछ बाकी है ,
बस ऐसे ही कुछ पलों में ,
तू मुझे बहुत याद आती है।
काश जाने से पहले ,
तूने ऐक बार मुर कर देखा होता ,
काश जाने से पहले,
मैंने तुझे एक बार रोका होता ,
कभी हाथों में तेरा हाथ था,
खाली हाथों की लकीरों में तो अब ,
खाली जिंदगी ही नजर आती है ,
बस ऐसे ही कुछ पलों में ,
तू मुझे बहुत याद आती है।