Tuesday, February 24, 2009

खुदा जाने क्या अंजाम हो

नजरों ने फ़िर हिमाकत की हैं ,
एक चेहरे की चाहत की हैं ।
हाथ मैंने फ़िर फैलाए हैं ,
फ़िर वही दुआ माँगी हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह दुआ कुबूल हो जाए।

किसी के कदमो की आहट से ,
दिल को सरगम का एहसास होता हैं,
चोरी चोरी से देख कर किसी को ,
दिल जाने कितने सपने पिरौता हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह सपने सच हो जाए.

किसी की हसीं सूरत को मैंने
अपने दिल का चाँद बनाया हैं।
इस चाँद को छूने के लिए ,
मैंने हाथ आगे बढाया हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
जो वो मेरे दिल का चाँद हो जाए.

हसरत मेरी मेरे दिल को ,
माउसी के झोंके देती हैं ।
मेरी हकीकत आगे बढ़ कर ,
मेरे कदम रोक लेती हैं।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह हसरत हकीकत हो जाए।

नामुमकिन सी आरजू को लिए
मेरा दिल उसके पूरे होने की आरजू करता हैं ।
साथ ही साथ जाने क्यों ,
मेरा दिल यह भी सोचा करता हैं ।
खुदा जाने क्या अंजाम हो ,
अगर यह आरजू पुरी हो जाए.